Thursday, August 20, 2009

पुष्प

खुलती हुई पंखुडियां गुनगुनाती हैं
उजले से रंगों के साथ अनेकों गीत गातीं हैं
ओस की बूंदों से नहाकर कभी मुस्कुराती हैं
तो कभी हवा के झोंकों से सिहर जाती हैं