Friday, September 11, 2009
विकृत.. मानसिकता के बीज शायद बचपन से ही पनप जाते है .कम उम्र के लड़के भी मौका पा दरिन्दे बन हवानियत का नाच दिखाते है । दबी मानसिकता साथ ही लड़की होने के बोझ से दबी वो मासूम वापस प्रहार भी नही कर पाती है । पलट कर भागती है ,गिरती है ,और कुचली जाती है , माता पिता का विलाप भी किसी दिल नही दहलता है , नेतायो का कारवा आता है ,टहलता है और चला जाता है ,अस्पताल के बहार खड़ा हूजुम बस बरबस देखता ही रह जाता है ,अपनी मरतीबेटियों की शकल भी नही देख पाता है ,
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
बचपन में हो या किसी उम्र में - मानसिक विकृति मानवता के लिए घातक है।
ReplyDeleteआपकी अच्छी कोशिश बात कहने की। लिखते रहें। शुभकामना।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
shyamalsuman@gmail.com
www.manoramsuman.blogspot.com
nice.narayan narayan
ReplyDeleteBahut Barhia...aapka swagat hai... isi tarah likhte rahiye...
ReplyDeletePlease Visit:-
http://hellomithilaa.blogspot.com
Mithilak Gap...Maithili Me
http://mastgaane.blogspot.com
Manpasand Gaane
http://muskuraahat.blogspot.com
Aapke Bheje Photo
गहरी अभिव्यक्ति ।आभार ।
ReplyDeleteमानसिकता विकृति हो तो क्या बुड्ढा क्या जवान
ReplyDeleteक्या आदमी क्या ओरत सब एक जैसे हि होते है
ईश़्वर अल्लाह तेरो नाम
आपको सफ़लता दे भगवान
स्वागत,खुशआमदीद,wellcome
www.ishwarbrij.blogspot.com
विकृति के उभार का मार्मिक वर्णन। लिखते रहिए। कृपया वर्ड वेरिफ़िकेशन हटा लें।
ReplyDeleteवर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?> इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें
अनु ...क्या चित्रण किया है ??सच्चाई का पुट लिए ......हालात तो यही हैं...अफ़सोस !!!
ReplyDeleteलिखतीं रहें !!!
Wow anu ji awesome....
ReplyDeletepar ladkiyaan ab abla nahi rahi...
aur hain to nahi rehni chahiye...
...ek nai jagrookta ki zarrorat hai.
ek naye falsafe ko gadhne ki zarurat hai is aadhi aabadi ke liye.
aapki baki sabhi micro posts...
'rahai', 'din', 'pushp' bhi badi acchi lagi.
aur haan word verification hata dewein.
welcome ,excellent expressions
ReplyDeleteअनु ...क्या चित्रण किया है
ReplyDeletesunder hai
मार्मिक वर्णन
ReplyDeleteलिखते रहें
शुभकामना
*********************************
प्रत्येक बुधवार सुबह 9.00 बजे बनिए
चैम्पियन C.M. Quiz में |
प्रत्येक रविवार सुबह 9.00 बजे शामिल
होईये ठहाका एक्सप्रेस में |
प्रत्येक शुक्रवार सुबह 9.00 बजे पढिये
साहित्यिक उत्कृष्ट रचनाएं
*********************************
क्रियेटिव मंच
ati sundar prastuti hai.
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट पर टिप्पणी के बजाए मुझे अपनी ये कविता सटीक लगती है
ReplyDeleteफोटोग्राफर.....
स्त्री हो या पुरूष
मैं सबकी तरफ सरेआम
एक आंख मींचता हूं
जी हां फोटोग्राफर हूं
फोटो खींचता हूं
क्या करूं धंधा ही ऐसा है
आंख मारने में ही पैसा है
एक बार एक विचित्र प्राणी मेरे पास आया
उसने अपना एक फोटो खिंचाया
बोला
ये रहे पैसे संभालो
इसके छै प्रिंट निकालो
मैं इस बात से हैरान था
ये आदमी था या शैतान था
क्योंकि जब मैंने उसके पोज बनाए
सभी पोज अलग अलग आए
पहला प्रिंट निकाला
बिलकुल काला
दूसरा निकाला
कम्बख्त पुलिस वाला
तीसरा निकाला ये क्या जादू है
ये तो कमण्डल लिए भगवे वस्त्र वाला साधू है
चैथा मास्टर था हाथ में छड़ी थी
एक निस्सहाय छात्रा उसके पास खड़ी थी
पांचवा कंपनी का अधिकारी
उसके साथ कंपनी की एक कर्मचारी
छठा डाक्टर और उसका आपरेशन थियेटर
साथ में परेशान एक सिस्टर
फोटो खींचते अर्सा हो गया था
पर ऐसा तो कभी नहीं हुआ था
नेगेटिव एक प्रिंट छै
अचम्भा है
अब हमारा दिल उससे मिलने को बेकरार था
उसका तगड़ा इंतजार था
खैर वो आया
हमने कहा आइये
बोला मेरे फोटो लाइये
हम बोले यार तुम आदमी हो या घनचक्कर
क्या माजरा है क्या चक्कर
हमने तुम्हारे छै प्रिंट निकाले
एक काला बाकी सब निराले
हमारी तो कुछ भी समझ में नहीं आता
कोई भी फोटो किसी से मेल नहीं खाता
दिमाग चकरा गया है हमारा
बताओ कौन सा प्रिंट है तुम्हारा
वो बोला
मेरा असली फोटो है पहले वाला
जो आया है बिलकुल काला
यही असली है
बाकी तो नकली हैं
शेष पांच में तो मेरी छाया है
इन लोगों पर मेरा ही तो साया है
हम हड़बड़ा कर पूछ बैठे
कुछ परिचय दीजिए श्रीमान
बताइये कुछ अता-पता
कुछ पहचान
बोला नहीं पहचाना
धिक्कार है
आजकल चारों तरफ मेरी ही जय-जयकार है
अखबारों में सम्मान है पत्रिकाओं में सत्कार है
रे मूर्ख फोटोग्राफर
मेरा नाम बलात्कार है
मैं बाहर से भीतर से काला ही काला हूं
काले मन वाला हूं काले दिल वाला हूं
हमने कहा अबे ओ बलात्कार
तू क्यों करता है अत्याचार
तेरे कारण नैतिकता का बेड़ा गर्क हो रहा है
हिन्दुस्तान स्वर्ग था नर्क हो रहा है
बोला
कह लो मुझे तो आपकी इनकी उनकी सबकी सहनी है
पर सच कहता हूं मैंने किसी की वर्दी नहीं पहनी है
मैंने तो सबसे नाता तोड़ा हुआ है
पर इन सब ने मुझे बुर्का समझ कर औढ़ा हुआ है
इतना कह कर वो तो हो गया रफूचक्कर
और मुझे आने लगे चक्कर
अब मुझे उस नेगेटिव से दहशत हो रही है
अगले फोटो में शायद एक और बेटी रो रही हो
एक और बहन अपनी आबरू खो रही हो
कभी कभी
http://chokhat.blogspot.com/
पर भी आया कीजिए