Monday, September 14, 2009

जहाँ होता है उपहास का प्रहार ,हो जाते है वहाँ बड़े बड़े सूरमाओ के दिल तार तार, लोग व्यंग वाण बोल मुस्कुराते है ,आप घायल पंछी की तरह अपना दिल फडफडाते है , जिसके हाथ में है उपहास की तलवार ,वह जब चाहे कर दे किसी पर कैसा भी वार , आप चाहे हो कितने भी बड़े ज्ञानी , उपहासी की कुटिल भंगिमा के आगे आप भरेंगे कोटि कोटि पानी ,कंही वह मेरी हँसी तो नही उडाएगा , उपहासी के सामने बार बार यह ख्याल आपको डगमगायेगा ,आपका बचा खुचा आतामविशवास खीझ कर और भी गिर जायगा ,आपकी यू पतली हालत देख ,उपहासी का कटाक्ष और भी कटीला हो जायगा ,द्रोपोदी के कटाक्ष ने करा दी महाभारत की मारामारी , इन उपहासको के आगे है सारी दुनिया हारी

Friday, September 11, 2009

विकृत.. मानसिकता के बीज शायद बचपन से ही पनप जाते है .कम उम्र के लड़के भी मौका पा दरिन्दे बन हवानियत का नाच दिखाते है । दबी मानसिकता साथ ही लड़की होने के बोझ से दबी वो मासूम वापस प्रहार भी नही कर पाती है । पलट कर भागती है ,गिरती है ,और कुचली जाती है , माता पिता का विलाप भी किसी दिल नही दहलता है , नेतायो का कारवा आता है ,टहलता है और चला जाता है ,अस्पताल के बहार खड़ा हूजुम बस बरबस देखता ही रह जाता है ,अपनी मरतीबेटियों की शकल भी नही देख पाता है ,